प्रिया आगमन

कुसुम कली  तिय घर आई
रम्य रूप मन को भायी 
नवयौवना  मूरत सी परछाई 
सजा मंगतिक्का स्वर्ण आभूषण 
मीन नयन में है आकर्षण 
अरुण अधर मोती सा बदन 
मन उद्धत  करूं प्रेमांकन  
वीणा की ध्वनि झंकृत हुई 
बोली और मनमीत हुई 
निशीथ पहर आई बाँहों में 
मैं कलत्र खोया भावों में 
जीवन  धारा
अति तेज़ हुई 
शूल रहित पुष्प सेज हुई
 परिजन  की तथता थी भाई 
प्राणप्रिया मेरे घर आई 

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