पीड़ा की अभिव्यक्ति

दर्द है सभी में 
जुबां  है बंद 
आँखों में पानी है 
पर हंसी का आवरण 
निगल रहा है पीड़ा को 
नहीं उसके अभिव्यक्ति को 
यह कैसी पीड़ा है ?
धर्म अर्थ काम की 
तन मन या अपमान की 
आभास अनंत है 
फिर मुख क्यों मौन है ?
किसी के आने का इंतजार है 
या किसी के चले जाने का 
शब्द नहीं है या जुबान 
शायद भाषा का ज्ञान नहीं है 
फिर तो हर तरफ अंधकार है 
अभिव्यक्ति सुख की हो 
चाहे हो पीड़ा की 
सभी महसूस करते हैं अभिव्यक्ति 
भाषा की और मुख की। 
         (१८ /१/२०१३ ,दिल्ली )        
  

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