मित्र की मूँछे

मूँछे  रावण की हो
यमराज की
डरावनी मूँछे
पुरुष सत्ता की पहचान मूँछे
छोटी पतली मोटी
चौड़ी -लम्बी मूँछे
नए फैशन में
नए रंग की मूँछे
काली सफ़ेद सुनहली मूँछे
वो सुन्दर-सी मूँछे
मुख की शोभा बढ़ा  रही थी
जिसे देख पुस्तक मेले में
हँसी एक लड़की
मैं भी हँसा
सब हँसने लगे
मेरे मित्र अपनी मूँछ
अँगुलियों से सहला रहे थे
मित्र की मूँछे   देखकर
कोई भयभीत नहीं था
पर किसी को प्यार आ रहा था।

        (२४/८/२०१३ ,दिल्ली )           मुन्ना साह ,शोधार्थी ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली-७

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