पावस गमन
एहसास शरद का नित नूतन
देखा तुमने मारुत
ओ नयन !
हल्की -हल्की किरणें
कुछ धूल उड़ती हुई
स्मृति भी-
धुंधली-धुंधली सी
अंतर मन औंघाई की
तुम विघ्न न बनो
ओ ठिठरन पावस की
खग ने पंख खुजलाई
बारिश जोरों की आई
नहीं रहा नीड़ नहीं रहा
वाह - वाह पावस
तुमने भी रंग जमाई।
(१३/१०/२०११ , नई दिल्ली ) मुन्ना साह
शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७
चलभाष :८८८२५१११६७

ओ नयन !
हल्की -हल्की किरणें
कुछ धूल उड़ती हुई
स्मृति भी-
धुंधली-धुंधली सी
अंतर मन औंघाई की
तुम विघ्न न बनो
ओ ठिठरन पावस की
खग ने पंख खुजलाई
बारिश जोरों की आई
नहीं रहा नीड़ नहीं रहा
वाह - वाह पावस
तुमने भी रंग जमाई।
(१३/१०/२०११ , नई दिल्ली ) मुन्ना साह
शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७
चलभाष :८८८२५१११६७
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