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"डेहरी" कविता-संग्रह की भूमिका

'Thing clay / stone house / what is your suit / steel Create / Dehri the protean / was / were the rock / stone house Either / or soil residues / or clay heart. "- A young poet's concern to our Time is a big concern. And it is reassuring that our shattering time today Within a generation that has created a constructive deviation. Tot year's Poems do not like a vast, vast nor spin. But our time of life, caught up and end the constant breakdown somewhere threads Not sure where to grips. In the process of expression of the young poet Mates are made - some people stuck in the world of oblivion, some goods and Some conditions. Like Dehri your near and too many - small Expression of things and Conditions tot dissolved in Shah - have been found. 'Dehri' first poetry of Shah tot - collection. A sensitive and thoughtful Like the poet within this ongoing comprehensive stir through the collection and Against noise would prepare the ground for a meaningful dialogue. Today...

"भारतीय शोधार्थी मंच" के अंतर्गत दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रांगड़ में (मुन्ना साह का) काव्य-पाठ

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मंच के संचालक  शोधार्थी रामनरेश राम, हिंदी विभाग के सुधी शोधार्थी अनुपम सिंह, रेखा जी, प्रीति जी, रवींद्र प्रताप सिंह, विनोद कुमार विद्यार्थी, अमर नाथ गुप्त, वीरेंद्र कुमार मीणा तथा अनेक शोधार्थी  भिन्न-भिन्न विषय के मौजूद थे , प्रथम कविता  "माँ" की काफी समय तक समीक्षा होती रही, 'मृत्यु' और 'डेहरी' कविता ने जीवन का सत्य तथा ग्रामीण संस्कृति को उद्घाटित कर सुखद एवं यथार्थ अनुभूति का बोध कराने में सफलता हांसिल की , रेखा जी के शोध विषय पर चर्चा के साथ मंच का समापन हुआ।

आदमी

कुछ बातों से कुछ जज्बातों से  संवेदनाओं से  प्रेम-व्यवहार से  दूर ही से  कोई दीखता है  आदमी।  कुछ ही बन पते हैं  कुछ ही समझ पाते हैं  कौन है ? जिसे कहा जाए   आदमी। जो -  काले-गोर में भेद करे  ऊँच-नीच में भेद करे स्त्री-पुरुष में भेद करे  लम्बे-छोटे कद में भेद करे  क्षेत्र-क्षेत्र में भेद करे  क्या वहीँ है ? आदमी। वो है बिलकुल वहीँ  जिसे सब कहें सच्चा ईमानदार  जिसे मिलता हो  सबका प्यार  जिसे कोई घृणा  न करता हो  जिसका कोई  दुश्मन न हो  वो है - आदमी। 
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हरिराम मीणा सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी, विश्वविद्यालयों में  विजिटिंग प्रोफ़ेसर  और  राजस्थान विश्वविद्यालय में शिक्षा दीक्षा ब्लॉग- http://harirammeena.blogspot.in 31, शिवशक्ति नगर, किंग्स रोड़, अजमेर हाई-वे, जयपुर-302019 दूरभाष- 94141-24101 ईमेल - hrmbms @yahoo.co.in फेसबुकी-संपर्क  गोविंद गुरु ने आदिवासी नायक पूंजा के साथ मिल कर संप सभा के माध्यम से तीन दशकों तक निरंतर आदिवासियों में पहले जागृति का काम किया। उन्होंने इसके लिए गांव-फलियों में संप सभाएं और धूणियां कायम कीं। उन्होंने आदिवासियों में सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन के लिए आंदोलन चलाए। खास तौर पर आदिवासियों में शराब के व्यापक चलन के विरुद्व उन्होंने सफल मुहिम चलाई, जिसका परिणाम यह हुआ कि बांसवाडा रियासत में 1913 में शराब की खपत 18,740 गैलन से घटकर केवल 5,154 गैलन रह गई। उन्होने घूम-घूम कर गांव-फलियों में जागृति और अन्याय-अत्याचार के प्रतिकार के लिए समर्पित और निषठावान कार्यकर्ताओं का एक संगठन खडा किया। अंतत: 1913 में आरपार की लड़ाई शुरू हुई। गोविंद गुरु के आह्वान पर 25,000 आदिवासी रणनीतिक महत्व के...

बरगद

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सदियों  से  खड़ा स्थिर देख रहा है बदलती संस्कृति को विशाल बरगद अपनी जड़ें फैलाए परम्पराओं का साक्षी अपनी शीतल छाया में बिन मांगे देता राहत मौन  होकर भी कहता है पते कि बात नये पत्ते आते हैं तो नया -नया लगता है नया जीवन पाता है हरवर्ष स्थिर होकर भी गतिशील है उसका स्वरूप गति में रहने का जीवन का सन्देश देता विशाल बरगद ।            3 /11 /2013 नई दिल्ली 

रेत

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नदियों सागरों के किनारे दीखते हैं रेत   सफ़ेद पीले रेत  अभ्रख से चमकते रेत  जमीन  से आसमान तक पहुंचने को उत्सुक  ऊंचे-ऊंचे इमारतों में चिपका हुआ  सीमेंट में सना हुआ कई टन दिखता है रेत  रेत काटते हैं मजदूर  गरीब काले-काले लोग  गाड़ियों में लादते हैं  पसीने से तर-बतर  रहते हैं झुग्गी-झोंपड़ी में ख्वाब बुनते हैं  पक्के माकन का  लेकिन दीवार  भी खड़ा नहीं कर पाते  उड़ जाता है  उनके  द्वार से  रक्खा हुआ रेत! हर रोज बढ़ रही है मांग रेत की  नदियों के आंट  कटते जा रहे हैं कई गांव डूब गए  फिर भी सब मौन हैं   क्योंकि  रेत पर खड़ा है  गृह उद्योग व्यापार  आश्रित हैं नेतागण भी  और चलती है सरकार।                                                   (31.10.2013, दिल्ली ...

लड़की

माँ मुझे आने दो इस भू पर माँ तुम समझती हो पीड़ा लड़की हूँ पाप नहीं तेरे रक्त से निर्मित मेरा डीएनए नहीं दूँगी दुख-दर्द  भार नहीं बनूँगी बचालो मुझे किसी विध स्त्री के दुश्मन से तू नहीं चाहती मैं खेलूँ तेरी गोद में नाचू आँगन में मुझे मत मरो कोख में मुझे जन्म दो आने दो अपने जीवन में हँसना चाहती हूँ आँचल के नीचे सिक्त छांव में (11/9/2013,दिल्ली) मुन्ना साह  

मोर पंख

सिर मुकुट सजा मोर पंख श्याम सांवरे का मेघ वर्ण प्रिय लता कुञ्ज बंसीधर राधा ध्वनि गूंजे वृन्दावन पवित्रता का प्रतीक पंख आदिवासी  का आभूषण अंश मेघा छाये घनघोर मोर थिरक-थिरक नाचे पंख फैलाये चहुंओर प्रिय बरसाए प्रेम बारिश राधा-कृष्ण चितचोर तुलसी वाल्मीकि कालीदास महाभारत के रचनाकार कर धरे मोर पंख वेदव्यास।                                  (२७/८/२०१३ ,दिल्ली ) मुन्ना साह 

मित्र की मूँछे

मूँछे  रावण की हो यमराज की डरावनी मूँछे पुरुष सत्ता की पहचान मूँछे छोटी पतली मोटी चौड़ी -लम्बी मूँछे नए फैशन में नए रंग की मूँछे काली सफ़ेद सुनहली मूँछे वो सुन्दर-सी मूँछे मुख की शोभा बढ़ा  रही थी जिसे देख पुस्तक मेले में हँसी एक लड़की मैं भी हँसा सब हँसने लगे मेरे मित्र अपनी मूँछ अँगुलियों से सहला रहे थे मित्र की मूँछे   देखकर कोई भयभीत नहीं था पर किसी को प्यार आ रहा था।         (२४/८/२०१३ ,दिल्ली )           मुन्ना साह ,शोधार्थी ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली-७

स्वतन्त्रता की भेंट

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 गुलदस्ता करूँ मैं भेंट आज का दिन सुहाना-सा है जम्मू से कन्याकुमारी गुजरात  से अरुणांचल तक का  हर फूल सजाया है हृदय की महक धर्मों की भाषा त्यौहारों,रीति-रिवाजों रंग रूपों का आवरण अकूत खजाना - सा है प्रेम के धागे में इन फूलों को सजाना-सा है आज स्वतंत्रता दिवस है गुलदस्ता करूँ मैं भेंट आपको - आज का दिन सुहाना सा है.        (१५ /८ /२०१३ ,दिल्ली )   मुन्ना साह                                                                                                                                                                  ...

पीड़ा की अभिव्यक्ति

दर्द है सभी में  जुबां  है बंद  आँखों में पानी है  पर हंसी का आवरण  निगल रहा है पीड़ा को  नहीं उसके अभिव्यक्ति को  यह कैसी पीड़ा है ? धर्म अर्थ काम की  तन मन या अपमान की  आभास अनंत है  फिर मुख क्यों मौन है ? किसी के आने का इंतजार है  या किसी के चले जाने का  शब्द नहीं है या जुबान  शायद भाषा का ज्ञान नहीं है  फिर तो हर तरफ अंधकार है  अभिव्यक्ति सुख की हो  चाहे हो पीड़ा की  सभी महसूस करते हैं अभिव्यक्ति  भाषा की और मुख की।           (१८ /१/२०१३ ,दिल्ली )           

हमें चाहिए आज़ादी

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आजादी ये आजादी हमें चाहिए आजादी  खद्दर पहने अन्नाजी  मांग रहे हैं आजादी  खाप पंचायत अभिशाप है  हरियाणा की कुमारियाँ  मांग रही हैं आजादी  विंध्य क्षेत्र की जनजातियाँ  कोल कंगाल बनी हैं  पत्थर तोड़ पेट पालते  इलाहाबाद शंकरगढ़ के  बंधुआ मजदूरों की मांग   हमें चाहिए आजादी  घूँघट में छुपी  परदे से ढँकी  बारह बरस की  ललमुनिया मांग रही  पढने-लिखने की आजादी   हमें चाहिए आजादी।        (१४ /८/३०१३ ,नई दिल्ली )           मुन्ना साह                                            शोध अध्येता ,हिंदी विभाग                                        दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७  

पावस गमन

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एहसास शरद  का नित नूतन देखा तुमने मारुत ओ नयन ! हल्की -हल्की  किरणें कुछ धूल उड़ती हुई स्मृति भी- धुंधली-धुंधली सी अंतर मन औंघाई की तुम विघ्न न बनो ओ ठिठरन पावस की खग ने पंख खुजलाई बारिश जोरों की आई नहीं रहा नीड़ नहीं रहा वाह - वाह पावस तुमने भी रंग जमाई।             (१३/१०/२०११ , नई दिल्ली )        मुन्ना साह                                  शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७                                                     चलभाष :८८८२५१११६७

BEAUTIFUL LINE

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"THE BEST MEDICINE FOR HUMAN IS LOVE & CARE."

हाय रे कोचिंग

बेरोजगारों से चलता है कुछ लोगों का रोजगार लाखों नहीं करोड़ो में है कोचिंग का व्यापार ! एसी है कूलर है प्रोजेकटर भी लगे हैं मुखर्जीनगर दिल्ली में ढेरों  पोस्टर सजे हैं आईएएस आईपीएस सब बनने को तैयार कोचिंग में जाते ही बदल जाता है व्यवहार कुछ बाबा कुछ नए यहाँ लाखों पड़े हैं लिव-इन-रिलेशन में कुछ जीवन जी रहे हैं बेदी त्रिपाठी राव का खुब नाम है एडमिशन में यहाँ बड़ा मोलभाव है।                           (७ /८ /२०१३  ,नई दिल्ली )              मुन्ना साह                                                  शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली -७  

कल्पना

कल्पना मुझसे रूठ गई मैं खुद को भूल गया हूँ स्वप्न सारे बिखर गए अब नींद से जग गया हूँ ढूंढ़ता रहा उस पल को जो कब के बीत चुके हैं स्याही ख़त्म हो गई क्या ? की कलम खो गई राहों में लेखनी मेरी सारी अधुरी पड़ा मैं कबसे भावों में एक के बाद दूसरे आते कितने प्यारे राहों के मोड़ संवेदना नहीं किसी से कोई राही चले अपनों को छोड़                          (२४/५ /२००९ ,प. चंपारण  )                                                                   मुन्ना  साह                               शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७  

गुलाब महकता है

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गुलाब महकता है जब सुदूर में  पड़ता है तन पे  प्रियता का प्रभाव अरुणमय है स्वरूप  प्रेम का प्रतीक  रश्मियों का स्नेह  हृदय में , छा  जाय गुलाब  गुलाब महकता है  उन्मुक्त निरभ्र आकाश हो  व ईला का सुप्रवास  गुलाब महकता  है  कांटो के उलझन में कंटीले तारों के बंधन में झूमता है उमंग में प्रेमियों के संग में गुलाब महकता है दे रहा सन्देश सद्विचार भावों में संवेदना के चिन्हों में मानवता के रूप में गुलाब महकता है। (१७/२/२००५ , गोरखपुर )                                                                                                  मुन्ना  साह         शोध अध्येता , दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७ 

प्रिया आगमन

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कुसुम कली  तिय घर आई रम्य रूप मन को भायी  नवयौवना  मूरत सी परछाई  सजा मंगतिक्का स्वर्ण आभूषण  मीन नयन में है आकर्षण  अरुण अधर मोती सा बदन  मन उद्धत  करूं प्रेमांकन   वीणा की ध्वनि झंकृत हुई  बोली और मनमीत हुई  निशीथ पहर आई बाँहों में  मैं कलत्र खोया भावों में  जीवन  धारा अति तेज़ हुई  शूल रहित पुष्प सेज हुई  परिजन  की तथता थी भाई  प्राणप्रिया मेरे घर आई