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मोर पंख

सिर मुकुट सजा मोर पंख श्याम सांवरे का मेघ वर्ण प्रिय लता कुञ्ज बंसीधर राधा ध्वनि गूंजे वृन्दावन पवित्रता का प्रतीक पंख आदिवासी  का आभूषण अंश मेघा छाये घनघोर मोर थिरक-थिरक नाचे पंख फैलाये चहुंओर प्रिय बरसाए प्रेम बारिश राधा-कृष्ण चितचोर तुलसी वाल्मीकि कालीदास महाभारत के रचनाकार कर धरे मोर पंख वेदव्यास।                                  (२७/८/२०१३ ,दिल्ली ) मुन्ना साह 

मित्र की मूँछे

मूँछे  रावण की हो यमराज की डरावनी मूँछे पुरुष सत्ता की पहचान मूँछे छोटी पतली मोटी चौड़ी -लम्बी मूँछे नए फैशन में नए रंग की मूँछे काली सफ़ेद सुनहली मूँछे वो सुन्दर-सी मूँछे मुख की शोभा बढ़ा  रही थी जिसे देख पुस्तक मेले में हँसी एक लड़की मैं भी हँसा सब हँसने लगे मेरे मित्र अपनी मूँछ अँगुलियों से सहला रहे थे मित्र की मूँछे   देखकर कोई भयभीत नहीं था पर किसी को प्यार आ रहा था।         (२४/८/२०१३ ,दिल्ली )           मुन्ना साह ,शोधार्थी ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली-७

स्वतन्त्रता की भेंट

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 गुलदस्ता करूँ मैं भेंट आज का दिन सुहाना-सा है जम्मू से कन्याकुमारी गुजरात  से अरुणांचल तक का  हर फूल सजाया है हृदय की महक धर्मों की भाषा त्यौहारों,रीति-रिवाजों रंग रूपों का आवरण अकूत खजाना - सा है प्रेम के धागे में इन फूलों को सजाना-सा है आज स्वतंत्रता दिवस है गुलदस्ता करूँ मैं भेंट आपको - आज का दिन सुहाना सा है.        (१५ /८ /२०१३ ,दिल्ली )   मुन्ना साह                                                                                                                                                                  ...

पीड़ा की अभिव्यक्ति

दर्द है सभी में  जुबां  है बंद  आँखों में पानी है  पर हंसी का आवरण  निगल रहा है पीड़ा को  नहीं उसके अभिव्यक्ति को  यह कैसी पीड़ा है ? धर्म अर्थ काम की  तन मन या अपमान की  आभास अनंत है  फिर मुख क्यों मौन है ? किसी के आने का इंतजार है  या किसी के चले जाने का  शब्द नहीं है या जुबान  शायद भाषा का ज्ञान नहीं है  फिर तो हर तरफ अंधकार है  अभिव्यक्ति सुख की हो  चाहे हो पीड़ा की  सभी महसूस करते हैं अभिव्यक्ति  भाषा की और मुख की।           (१८ /१/२०१३ ,दिल्ली )           

हमें चाहिए आज़ादी

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आजादी ये आजादी हमें चाहिए आजादी  खद्दर पहने अन्नाजी  मांग रहे हैं आजादी  खाप पंचायत अभिशाप है  हरियाणा की कुमारियाँ  मांग रही हैं आजादी  विंध्य क्षेत्र की जनजातियाँ  कोल कंगाल बनी हैं  पत्थर तोड़ पेट पालते  इलाहाबाद शंकरगढ़ के  बंधुआ मजदूरों की मांग   हमें चाहिए आजादी  घूँघट में छुपी  परदे से ढँकी  बारह बरस की  ललमुनिया मांग रही  पढने-लिखने की आजादी   हमें चाहिए आजादी।        (१४ /८/३०१३ ,नई दिल्ली )           मुन्ना साह                                            शोध अध्येता ,हिंदी विभाग                                        दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७  

पावस गमन

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एहसास शरद  का नित नूतन देखा तुमने मारुत ओ नयन ! हल्की -हल्की  किरणें कुछ धूल उड़ती हुई स्मृति भी- धुंधली-धुंधली सी अंतर मन औंघाई की तुम विघ्न न बनो ओ ठिठरन पावस की खग ने पंख खुजलाई बारिश जोरों की आई नहीं रहा नीड़ नहीं रहा वाह - वाह पावस तुमने भी रंग जमाई।             (१३/१०/२०११ , नई दिल्ली )        मुन्ना साह                                  शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७                                                     चलभाष :८८८२५१११६७

BEAUTIFUL LINE

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"THE BEST MEDICINE FOR HUMAN IS LOVE & CARE."

हाय रे कोचिंग

बेरोजगारों से चलता है कुछ लोगों का रोजगार लाखों नहीं करोड़ो में है कोचिंग का व्यापार ! एसी है कूलर है प्रोजेकटर भी लगे हैं मुखर्जीनगर दिल्ली में ढेरों  पोस्टर सजे हैं आईएएस आईपीएस सब बनने को तैयार कोचिंग में जाते ही बदल जाता है व्यवहार कुछ बाबा कुछ नए यहाँ लाखों पड़े हैं लिव-इन-रिलेशन में कुछ जीवन जी रहे हैं बेदी त्रिपाठी राव का खुब नाम है एडमिशन में यहाँ बड़ा मोलभाव है।                           (७ /८ /२०१३  ,नई दिल्ली )              मुन्ना साह                                                  शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली -७  

कल्पना

कल्पना मुझसे रूठ गई मैं खुद को भूल गया हूँ स्वप्न सारे बिखर गए अब नींद से जग गया हूँ ढूंढ़ता रहा उस पल को जो कब के बीत चुके हैं स्याही ख़त्म हो गई क्या ? की कलम खो गई राहों में लेखनी मेरी सारी अधुरी पड़ा मैं कबसे भावों में एक के बाद दूसरे आते कितने प्यारे राहों के मोड़ संवेदना नहीं किसी से कोई राही चले अपनों को छोड़                          (२४/५ /२००९ ,प. चंपारण  )                                                                   मुन्ना  साह                               शोध अध्येता ,दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७  

गुलाब महकता है

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गुलाब महकता है जब सुदूर में  पड़ता है तन पे  प्रियता का प्रभाव अरुणमय है स्वरूप  प्रेम का प्रतीक  रश्मियों का स्नेह  हृदय में , छा  जाय गुलाब  गुलाब महकता है  उन्मुक्त निरभ्र आकाश हो  व ईला का सुप्रवास  गुलाब महकता  है  कांटो के उलझन में कंटीले तारों के बंधन में झूमता है उमंग में प्रेमियों के संग में गुलाब महकता है दे रहा सन्देश सद्विचार भावों में संवेदना के चिन्हों में मानवता के रूप में गुलाब महकता है। (१७/२/२००५ , गोरखपुर )                                                                                                  मुन्ना  साह         शोध अध्येता , दिल्ली विश्वविद्यालय ,दिल्ली -७ 

प्रिया आगमन

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कुसुम कली  तिय घर आई रम्य रूप मन को भायी  नवयौवना  मूरत सी परछाई  सजा मंगतिक्का स्वर्ण आभूषण  मीन नयन में है आकर्षण  अरुण अधर मोती सा बदन  मन उद्धत  करूं प्रेमांकन   वीणा की ध्वनि झंकृत हुई  बोली और मनमीत हुई  निशीथ पहर आई बाँहों में  मैं कलत्र खोया भावों में  जीवन  धारा अति तेज़ हुई  शूल रहित पुष्प सेज हुई  परिजन  की तथता थी भाई  प्राणप्रिया मेरे घर आई