ताप
आज की गर्मी से
मस्तिस्क के भीतर
न्यूरोन्स को भी
ताप का एहसास हुआ
उस ताप से
स्थियों को नहीं
रोम-रोम को पीड़ा हुई
उनके मूल में स्वेद ने विस्तार पाया
शरीर का पूरा आवरण भींग गया
हृदय में शूल-सा चुभने लगा
यह अचानक आई
घटना नहीं है
वर्षों के अत्याचार का परिणाम है
जो हमने किया है
प्रकृति के नष्ट किए
जो शाद्वल स्वरूप
उसी का प्रतीकार है
उसके हृदय की उष्णता है
हजारों वृक्ष और पौधे
कम कर सकते हैं
इसकी उष्णता
और हम पा सकते हैं शीतलता
और इस ताप से राहत !
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