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सद्भावना

सद्भावना सद्भावना सद्भावना हर मानव के हृदय में हो प्रेम भावना उज्ज्वल भविष्य और आशाओं के फूल खिले हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब गले मिले किसी से न हो द्वेष, रखे सब बंधुत्व भावना सद्भावना सद्भावना सद्भावना सात दिन सात रंग सात महादेश हैं भिन्न-भिन्न भाषाएं वेष भूषाएं भी अनेक हैं सात समुद्र पार से चाहें जो भी आए  ना मिलकर करते स्वागत हमारी यही भावना सद्भावना सद्भावना सद्भावना !

नागफनी

अक्सर तुम गमले में सजाये हुये दिखते हो नागफनी ! कांटो से भरे हरे - हरे तुम्हारी सुंदरता और शौम्यता  अरुण अद्भुत फूलों में जिसे खिलने नहीं दिया जाता तुम कब खिलते हो ? रबी फसलों के साथ कि खरीफ के वक्त सूख से गए हो ! छिन गया है तेरा वजूद मजदूर कि भांति जो दूसरे कि शोभा बढ़ाने में कृषकाय हुआ है तुम्हारी तरह तुम स्थिर हो गए हो  मजदूर स्थिर नहीं है ! तुम्हारे फूल छिने गए मजदूर के मूल !
हिंदी में हर काम सरल है, कर के देखें। जीवन को सुखमय बनाने के लिए अपनो से जुड़े रहने की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी को जानें पर हिंदी का उपयोग ज्यादा करें जिससे अपने भरतवासियों को दूरी का एहसास ना हो।
              (लघु कथा)          दिल्ली के बंदर   उन दिनों जब दिल्ली में खूब गरमियाँ पड़ने लगी थी , तो लोग एसी , कूलरों से घर सजाने लगे थे ! कुत्ते , बिल्लियों के लिए कयामत-सी आ गई थी । सब अपनी क्षमता के अनुसार गर्मी से बचने के उपाय कर रहे थे । लेकिन वे ‘ दिल्ली के तीन बंदर ’ लंबी-लंबी छलांग लगाते , प्रतिस्पर्धा करते , एक डाल से दूसरी डाल तो कभी किसी के छत पर तो कभी किसी और के छत पर । ऐसे ही गर्मी से राहत की खोज में तीनों कश्मीर जा पहुंचे । वहाँ एक टोपी किसी फौजी का गिरा हुआ उन्हें मिल गया। एक पहनता तो दूसरा उसे झपट लेता । दूसरा बहुत ही जद्दोजहद के बाद उल्टी-सीधी पहन भी लेता तो तीसरा उसे झपट लेता । ऐसे ही तीनों बड़े मौज में थे । पर उनके भाग्य में शायद जिंदगी के कुछ ही दिन शेष रह गए थे । भारत , पाकिस्तान का युद्ध हो रहा था। वे भी मातृभूमि का कर्ज चुकाने के लिए भारतीय फौज में सम्मिलित हुए और सांकेतिक लड़ाई लड़ने लगे । तीन-तीन इंच का पाकिस्तानी कारतूश बारी-बारी से तीनों क...

टिफिन का खाना

टिफिन खाओ टिफिन भूख नियंत्रित करने कि दवा इसके रंग और बनावट निराले हैं खुलते ही महकता ऊर्जा का सस्ता स्रोत अंदर में रखा हुआ भोजन स्नेह से नहीं पका जल्दी में पका है मधुरता क्यों ढूढ़ते हो ? पेट पालना  है तो स्वाद न देखो शहरों की कुछ आबादी जिन्दा है टिफिन की बदौलत पतली दाल है तो क्या हुआ ? काली भी है ! गांव नहीं शहर है यहाँ पानी भी महंगा है अधपकी रोटी टूटे चावल जिसे गाय भी नहीं पूछती सब खाना पड़ता है आबादी जो बढ़ गयी है मुर्गों के पैर भी कुत्तों को नसीब नहीं हजम कर जाते कुछ लोग चना और आलू टिफिन में मिलेगा ही कभी-कभी पनीर के टुकड़े भी खाओ टिफिन और जिओ !
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अंतररास्ट्रीय सेमिनार लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किया गया जिसमें -न्यू जर्सी , अमेरिका से आये श्री रामबाबू गौतम, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तथा दलित चिंतक  श्योराज सिंह बेचैन तथा अन्य विद्वान् सम्मिलित sahitysreejan.blogspot.com

डेहरी

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आदिवासी चेतना की  कविताओं का संग्रह - 'डेहरी' इसे प्राप्त करने के लिए (पुस्तक विक्रेता & प्रकाशक अजय मिश्रा के  इस  नंबर पर कॉल करें -09968629836 ) १५/०२/२०१४  को लग रहे अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला , प्रगति मैदान दिल्ली में स्वराज प्रकाशन के स्टॉल पर संपर्क करे।                                                                                                                   - धन्यवाद