(लघु कथा) दिल्ली के बंदर उन दिनों जब दिल्ली में खूब गरमियाँ पड़ने लगी थी , तो लोग एसी , कूलरों से घर सजाने लगे थे ! कुत्ते , बिल्लियों के लिए कयामत-सी आ गई थी । सब अपनी क्षमता के अनुसार गर्मी से बचने के उपाय कर रहे थे । लेकिन वे ‘ दिल्ली के तीन बंदर ’ लंबी-लंबी छलांग लगाते , प्रतिस्पर्धा करते , एक डाल से दूसरी डाल तो कभी किसी के छत पर तो कभी किसी और के छत पर । ऐसे ही गर्मी से राहत की खोज में तीनों कश्मीर जा पहुंचे । वहाँ एक टोपी किसी फौजी का गिरा हुआ उन्हें मिल गया। एक पहनता तो दूसरा उसे झपट लेता । दूसरा बहुत ही जद्दोजहद के बाद उल्टी-सीधी पहन भी लेता तो तीसरा उसे झपट लेता । ऐसे ही तीनों बड़े मौज में थे । पर उनके भाग्य में शायद जिंदगी के कुछ ही दिन शेष रह गए थे । भारत , पाकिस्तान का युद्ध हो रहा था। वे भी मातृभूमि का कर्ज चुकाने के लिए भारतीय फौज में सम्मिलित हुए और सांकेतिक लड़ाई लड़ने लगे । तीन-तीन इंच का पाकिस्तानी कारतूश बारी-बारी से तीनों क...
संदेश
मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं