रेत

नदियों सागरों के किनारे दीखते हैं रेत सफ़ेद पीले रेत अभ्रख से चमकते रेत जमीन से आसमान तक पहुंचने को उत्सुक ऊंचे-ऊंचे इमारतों में चिपका हुआ सीमेंट में सना हुआ कई टन दिखता है रेत रेत काटते हैं मजदूर गरीब काले-काले लोग गाड़ियों में लादते हैं पसीने से तर-बतर रहते हैं झुग्गी-झोंपड़ी में ख्वाब बुनते हैं पक्के माकन का लेकिन दीवार भी खड़ा नहीं कर पाते उड़ जाता है उनके द्वार से रक्खा हुआ रेत! हर रोज बढ़ रही है मांग रेत की नदियों के आंट कटते जा रहे हैं कई गांव डूब गए फिर भी सब मौन हैं क्योंकि रेत पर खड़ा है गृह उद्योग व्यापार आश्रित हैं नेतागण भी और चलती है सरकार। (31.10.2013, दिल्ली ...